Thursday, December 18, 2014

स्वर्ग से आई चिट्ठी

A letter from heaven

Ammi-Abbu ,
Assalamualaikum

Mere is Duniya se rukhsat hone ki khabar aapko milgayi hai.. Mai sab dekh rahi hu yahaan se, haan ammi jannat se.. Mat roiye na aap, abbu ko bhi mana kijye, wo hamesha mujhe kehte thai k "mera bahadur beta, chot lagne par rote nahi" .. Aaj unk dil ko bhi to chot lagi hai, unse kahiye bahadur bane,mat roye.. Ammi, mujhe maaf karna,is baar exam me first nahi aa paugi.. Mai dyniya k exam me haargayi Ammi.. Mujhe maaf karna..

Abbu, wo log bahut daraavne thai,wehshee thai.. Abbu,wo un bhooton ki kahaaniyon se bhi zyada darawne thai jinse mai darti thi.. Ammi-Abbu, wo monsters achanak school me ghus aaye,mujhe laga koi Khel hai shayad,inaam b milega.. Shayad luka chupi ka khel.. Abbu,Wo goliyaan aise barsa rahe thai jese aapne meri birthday par toffees baati thi..
Ammi,mai aapki nanhi si pari thi na, itni nanhi thi k kahaan chupti.. Ammi,unhone meri teacher ko mere saamne jala diya.. Abbu,par hum to sardiyon main lakdiyon ko jalaate hain,teacher ko kyu jalaya ? Ammi, aap hi kehti thi na,ghar sabke saath aana,akele kahi mat jana.. Ammi,par mai akele nahi thi,sab daud rahe thai,apne apne ghar jaane ko bhaag rahe thai.,
Ammi, mujhe ek maiz k neeche jagah mili, pata hai ammi,jese aap mujhe doodh dene k time dhundhti ho na ,wese unhone mujhe dhundhliya.. Ammi, khilone ki bandookon se to aisi goliyan nahi chalti.. Abbu, us waqt mujhe aap dono ki bahut yaad aayi.. Bas, aami aapki god me sar rakhne ka man tha aur abbu ki pyaar bhari aankhein dekhne ka man tha.. Ammi, aap mujhse kehti thi na k "Raani bitya ka laal joda banaugi shaadi k liye, ammi wesa hi laal khoon mere jism se nikal raha tha"..
Ammi-Abbu, mujhe ek baar apne
aapko aapki god main dekhna tha..

Abbu, par Maulana jis kalme ka matlab batate hain aman-chain, wo to unki zabaan par nahi tha. Ammi,Maine to aisa kabhi un Maulana se nahee seekha tha jo quran padhane ghar aate hain..
Ammi,aaj Maine dusri jannat b dekhli.. Ek aapke pairon mai thi aur ek yahaan upar.. Par ammi, yahaan aise wehshee nahi hain, kya unke liye alag jannat hoti hai???
Ammi-Abbu , mat rona ab... mai upar se sab dekh rahi hu.. Aap plz mat rona...
Aapki bitiya, school ka sabak to na padh sakee par insaaniyat ka sabak de gayee duniya ko...

Khuda Hafiz

Tuesday, April 1, 2014

1 अप्रैल:-  मुर्ख दिवस पे मूर्खों की पहचान ( चुनाव पे विशेष )

              हमारे  समाज में आज कल मुर्ख दिवस मनाने का जो प्रचलन  बहुत तेजी से बढ़ता हुआ दिख रहा है.. 
वो किसी एक दिन का मोहताज नहीं है, आज अगर हम अपने चारो ओर  नजर  ले जाये तो हजारों की संख्या में ऐसे लोगों की फ़ौज खड़ी मिलेगी जिन्हें आज के परिवेश में मुर्ख बनाने की आवश्यकता नहीं है , वो खुद अपने कर्मो के द्वारा इस उपाधि " मुर्ख " को  सुशोभित करते मिलेंगे |

                                          आज हम उन्ही के बारे में चर्चा करेंगे और ये जानने की कोशिश करेंगे की आखिर कौन वो विशेष लोगों की जमात है जो हम आम आदमियों के बीच रहते हुए इस विशेष उपाधि को ग्रहण किये हुए है |

             वर्ष २०१४ में यह सही अवसर प्राप्त हुआ है इस चुनावी समर में चर्चा करने का , सर्वप्रथम हम इस चुनावी समर को ध्यान में रखते हुए इस चर्चा को आरम्भ करेंगे | 
                            
                                    मूर्खों की उन्नत किस्म की  विशेष जनजाति हमारे भारत देश में पाई जाती है, जिनकी गणना हम कर नहीं सकते और जिन्हें हम पहचानने में पूर्णतः असफल है | हमारे इस विशाल देश के किसी कोने पे आप अगर नजर डालिए तो इस उन्नत किस्म के लोग आप को अवस्य नजर आ जायेंगे बस आप को अपनी एक पैनी नजर ले जाने की जरुरत होती है , इन लोगों में हम उन सर्वोच्च श्रेणी के मूर्खों को पाएंगे जो हार ५ सालों में इस महान चुनावी समर में पूरी तरह से क्रियाशील मिलेंगे | ये वो महान जनसँख्या होती है जो इस समय अपने को बहुत ही श्रेष्ठ समझती है पर उन्हे ये अंदाजा होता है की वो जिस कार्य को कर बहुत ही प्रगतिशील समझ रहे है यही कार्य उन्हें मूर्खों की सबसे उन्नत नस्ल में खड़ा कर रहा है और इस देश को भुत काल में ले जा रहा है .....
                                        जी मित्रों आप ने एकदम सही समझा में उन्ही लोगों की चर्चा कर रहा हूँ जो इस देश के हर व्यक्ति विशेष के पास मौजूद सबसे बड़ी शक्ति मतदान की शक्ति को गलत हाथो में कुछ लालच वश बेच देते है , वो ये कुकर्म करने के बाद बहुत ही खुश या बहुत ही उत्साहीत महसूस कर रहे होते है लेकिन उन्हें इस बात का बिलकुल भी अंदाजा होता है की उन्होंने मुर्ख की उपाधि से स्वयं को सुशोभित किया है | अपने मत को बेचने वाले 1 नंबर के मुर्ख होते है |

                             इस चर्चा में हम 2 नंबर पे उन महान आत्माओ पे विचार करेंगे जो चुनाव के दिन अपनी सबसे बड़ी शक्ति का उपयोग नहीं करते और उन्हें व्यर्थ जाने देते है , और फिर पुरे ५ साल सरकार को गाली देते रहते है , तो उनसे बड़ा मुर्ख इस पुरे विश्व में लालटेन लेके भी सर्च करने पे नहीं मिलेगा जो अपने एक दिन के आराम और मौज के चक्कर में अपने और अपने देश की भविष्य के साथ खिलवाड़ करते है |
  
                             इस चर्चा में तीसरे नंबर पे वो विशेष मुर्ख आते है जो जातीय या भोगौलिक परिवेश को ध्यान में रखते हुए अपने मत का प्रयोग करते है | और ये कहते है की चोर तो सब है तब क्यों न अपने जाती वाले को ही या अपने गावं या शहर वाले को ही वोट दे |

                             चौथे नंबर पे मूर्खों की की वो जमात आती है  जो अपने समाज  के बड़े गुंडे या दादा ,बाहुबली का चुनाव कर  उन्हें अपने  यंहा का प्रतिनिधि चुनती है |

             मित्रो में आप से इस चुनावी समर पे विशेष निवेदन करूँगा की आप अपने मत का प्रयोग अवश्य करे और इन विशेष उन्नत किस्म के मूर्खों की किशी भी विशेषता को मत अपनाइयेगा | और अपने दोस्तों परिजनों परिवार गण से अनुरोध जरुर करियेगा की अपनी इस विशेष शक्ति को पहचाने और इसका उपयोग एक अच्छे सच्चे अपने जनप्रतिनिधि को चुनने में करे | 

                                                     :-  अनिमेष श्रीवास्तव


" मेरी हर धड़कन भारत के लिए हैं "

 

 

 

 

 

 

 

Sunday, March 9, 2014

हकीकत 



मैंने जाना पूरी दुनिया का सच ,
जब मैंने गुजारी एक शाम at कब्रिस्तान & शमशान ...


जब जाना हो अकेले , जंहाँ कोई न हो साथ 
खाली पॉकेट और खाली हाथ 
तब बता मेरे भाई, क्यों है इतनी मारामारी 
उनसे टेंशन और इनसे यारी 

मैंने जाना पूरी दुनिया का सच ,
जब मैंने गुजारी एक शाम at कब्रिश्तान & शमशान ....

क्यों दुनिया मैं है इतनी टेंशन 
वो Beautiful है और वो है Handsom 
वो लड़की है और वो है लड़का 
वो तगड़ा है और वो है सिकुड़ा

न जाने क्यों है इतना अन्तर
जब अंतिम यात्रा का कोई नहीं है स्पेशल मंतर
जैसे जाता है गरीब वैसे ही जाता है अमीर 
नहीं है इसमें कोई स्पेशल रिजर्वेशन 
न टिकट का झंझट न TC का टेंशन 

जब जाना हो अकेले , जंहाँ कोई न हो साथ 
खाली पॉकेट और खाली हाथ 
तब बता मेरे भाई क्यों है इतनी मारामारी 
उनसे टेंशन और इनसे यारी 

फिर क्यों है इतने दंगे 
फिर क्यों है सारे नेता नंगे 
फिर क्यों फैला है भ्रष्टाचार 
फिर क्यों फैली है महंगाई की मार 

जब जाना हो अकेले , जंहाँ कोई न हो साथ 
खाली पॉकेट और खाली हाथ 
तब बता मेरे भाई क्यों है इतनी मारामारी 
उनसे टेंशन और इनसे यारी 

यंहा नहीं कोई हिन्दू है , यंहा नहीं कोई मुस्लिम है 
यंहा नहीं कोई मौलवी है , यंहा नहीं कोई पंडित है 
फिर किस बात का झगडा है 
क्यों अल्पसंख्यक और बाहुबली का रगड़ा है 
फिर क्यों बहता है खून सीमओं को लेकर 
फिर क्यों बहता है खून धार्मिक भावनाओं को लेकर 

जब जाना हो अकेले , जन्हा कोई न हो साथ 
खाली पॉकेट और खाली हाथ 
तब बता मेरे भाई क्यों है इतनी मारामारी 
उनसे टेंशन और इनसे यारी 

मैंने जाना पूरी दुनिया का सच 
जब मैंने गुजारी एक शाम at कब्रिश्तान & शमशान 


                                                                   :- अनिमेष श्रीवास्तव 
"मेरी हर धड़कन भारत के लिए है  "

Wednesday, August 17, 2011


अन्ना और सरकार

आज देश में जिस तरह का माहौल बन रहा है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अन्ना और सरकार दोनों पक्षों ने इस मामले में जिस तरह का अड़ियल रुख अपना लिया है वह किसी भी तरह से देश के हित में नहीं है. यह सही है   देश की जनता भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहती है और सरकार भी कई बार इस मसले पर सख्त बिल की बात कर चुकी है पर अचानक ही दोनों पक्षों की बात बनते बनते बिगड़ गयी और देश को जो कुछ मिल सकता था उसमें बहुत देर हो गयी. यह सही है की अन्ना को अपने लिए कुछ भी नहीं चाहिए पर साथ ही यह भी सही है की जो उन्हें चाहिए वह सरकार अपने दम पर नहीं दे सकती है. इसी क्रम को आगे बढ़ने के लिए देश में पहली बार सरकार ने किसी ड्राफ्ट को बनाने के लिए जनता के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर एक संयुक्त समिति बनायीं थी. यह अपना काम भी ठीक तरह से कर रही थी और कई मामलों पर सहमति भी बन चुकी थी जबकि कई मामलों पर मतभेद भी जारी थे. इस पूरे मसले में नया मोड़ तब सामने आ गया जब सरकार ने योग के नाम पर प्रदर्शन और अनशन कर रहे बाबा रामदेव को बलपूर्वक दिल्ली से बाहर कर दिया
इस तरह के बड़े परिवर्तन अचानक ही नहीं हो जाया करते हैं आज जो स्थिति है उसमें सभी पक्षों को संयम से काम लेना चाहिए. अन्ना की शांतिप्रियता पर किसी को संदेह नहीं है पर जब हजारों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है तो कौन सभी की ज़िम्मेदारी ले सकता है ? सरकार के सामने कानून व्यवस्था की समस्या है तो अन्ना को एक अच्छे लोकपाल की ज़रुरत..... पर दोनों ही बातें देश के लिए ज़रूरी हैं. आज इस बात की अधिक आवश्यकता है की देश को एक मज़बूत लोकपाल मिले पर साथ ही इस तरह के अनावश्यक विवादों से भी बचा जाये क्योंकि अगर देश में किसी भी तरह का किसी का भी नुकसान होता है तो वह हमारा ही  होगा. अब भी समय है की इस तरह के बड़े काम को केवल समय सीमा में न बाँधा जाये यदि सरकार की मंशा अच्छी है तो उसे भी अपनी तरफ से अच्छे संकेत देने चाहिए साथ ही अन्ना को भी यह समझना होगा की लोकतंत्र में यह सारी जटिल प्रक्रिया है और इसका बिना कोई भी सरकार कुछ भी नहीं कर सकती है. इस लोकपाल को मज़बूत बनाने के लिए आम जनता की राय भी लेनी चाहिए जिससे सभी की राय जानी जा सके. 
अब भी समय है की सरकार को इस मामले में पहल करनी ही चाहिए एक बात यह समझ में नहीं आती है की इस मसले पर संप्रग की सरकार कुछ करना चाहती है तो बाकि दल केवल मज़बूत लोकपाल की बातें ही क्यों करते हैं क्यों नहीं वे इस पूरी प्रक्रिया में शामिल होते हैं ? हर छोटी बड़ी बात के लिए संसदीय समिति की मांग करने वाले विपक्ष को क्या लोकपाल इतना आवश्यक नहीं लगता की इसके लिए भी वे कुछ मांग सकें ? अच्छा हो की इस मसले पर किसी भी तरह की हड़बड़ी से बचा जाये और इस पर विचार करने के लिए एक संसदीय समिति भी बनाई जाए जिससे देश के सभी राजनैतिक दल क्या कहते हैं यह भी जनता के सामने आ सके. साथ ही सभी राज्यों की विधान सभाओं में भी इस तरह की समितियां बनाई जाएँ जो पूरी तरह से विचार करके अपनी राय भी संसदीय समिति तक भेजें. टीम अन्ना को भी अब यह समझना चाहिए की वे जिस हक़ के लिए लड़ रहे हैं उसे पाने में अब कोई उन्हें नहीं रोक सकता है पर इस तरह के बड़े निर्णय आसानी से नहीं हुआ करते और जब बात भ्रष्ट राजनेताओं को भी कानून में लाने की हो तो डगर और भी कठिन हो जाती है. अब सरकार को अन्ना के साथ अनावश्यक सख्ती से बचना चाहिए साथ ही अन्ना को भी इस गतिरोध को तोड़ने के लिए कुछ नर्म तेवर दिखाने होंगें.   
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

Monday, August 15, 2011


भ्रष्टाचार कैंसर तो इलाज ?

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर अपने संबोधन में राष्ट्र को संबोधित करते हुए महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने जिस तरह से भ्रष्टाचार को कैंसर कह कर इसे बड़ी समस्या बताया है उससे यही लगता है कि आज सरकार भी इस बात को मान रही है देश की जनता इस बात को लेकर गंभीर हो चुकी है और केवल बातों से ही सब कुछ ठीक नहीं होने वाला है. जिस तरह से पिछले कुछ समय से सरकार पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है उससे यही लगता है कि अब सरकार भले ही आधे में से सही पर कुछ करने के बारे में सोचने लगी है. फिर भी अभी यह सोच उस स्तर तक नहीं बढ़ पाई है जहाँ से यह कहा जा सके कि सरकार ने इस बारे में वास्तव में ठोस करने के बारे में सोचना शुरू कर दिया है. 
देश में जो कुछ भी चल रहा है उसके बारे में ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है कि कोई कुछ नहीं जनता है फिर भी जो कुछ चल रहा है उसे समझने की ज़रुरत भी नहीं है. एक और स्वतंत्रता दिवस ऐसे ही निकल जायेगा और साथ ही निकल जायेंगीं देश की हसरतें भी ? कौन सोचेगा देश के बारे में ? हे मनमोहन ! कल कुछ ऐसा कह दो लालकिले से जो यह देश सुनना चाहता है.... मोह लो इस देश के हर नागरिक का मन... दिखा दो कि मन मोहने के साथ चक्र सुदर्शन भी आपके हाथ में है... नाश कर दो भ्रष्टाचार के इस रावण का..... सुन तो रहे हो न मोहनी मुस्कान वाले अब मुस्काने से काम नहीं चलने वाला है... चेत जाओ न....अब तो दे दो असली स्वाधीनता इस देश को 

   
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

Thursday, July 14, 2011

मुंबई आख़िर कब तक ?

देश की आर्थिक राजधानी पर एक बार फिर से आतंकी हमले ने यह बात साबित ही कर दी है कि चाहे जो हो जाये पर पाक किसी भी दबाव में आये बिना अपनी हरकतों को चालू रखने पर आमादा है. यह भी सही है कि विकास करता हुआ भारत पाक की आँखों में हमेशा ही खटकता रहता है पर इसका मतलब यह तो नहीं होना चाहिए कि भारत में हम सब अपनी सुरक्षा में केवल उसी समय पूरी चौकसी रखें जब हमारे पर कोई आतंकी हमला हो जाये ? इस तरह के आतंकी हमलों को किसी भी स्थिति में रोका नहीं जा सकता है परन्तु हमारे चौकस रहने से आतंकियों को इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने में अधिक सावधानी और परिश्रम की आवश्यकता पड़ेगी जिससे वे लगातार दबाव में रहकर गलतियाँ भी करेंगें. यह सही है कि २६/११ के बाद से केद्र सरकार ने कुछ प्रतिरोधात्मक कदम उठाये थे उनका इस हमले को रोकने में क्या हाथ रहा यह तो कोई नहीं बता सकता है पर जब भी इस तरह की घटनाएँ होती हैं तो सरकारें अचानक ही दबाव में आ जाया करती हैं. आज पाकिस्तान को कोसने के स्थान पर हमें इस बात पर विचार करना होगा कि आख़िर कैसे हम अपने को और सुरक्षित बना सकते हैं ?
    आतंक से निपटने के लिए देश को एक बहुत सख्त कानून की आवश्यकता है और इसमें किसी भी तरह की राजनीति आख़िर में देश के लिए ही विनाशकारी साबित होने वाली है इसलिए आतंकी घटनाओं की एक समय बद्ध तरीके से वैज्ञानिक जांच करने की दिशा में हमें अब बढ़ना ही होगा क्योंकि जब तक हमारे पास इस तरह की टीम नहीं होगी कि वह पूरी जाँच को सही तरीके से कर सके और एक बेहद कड़े कानून के तहत दोषियों को सजा भी दिलवा सके तब तक देश में इस तरह के आतंकी हमले रोकने की कोई भी कवायद बेकार ही साबित होने वाली है. आतंक निरोधी कानून पर जिस तरह से राजनैतिक दल अपने वोट बैंक को बचाने की कोशिशें करते नज़र आते हैं वह बेहद घटिया है क्योंकि आतंकियों की गोली और बम किसी की जाति और धर्म नहीं पूछते हैं उन्हें तो केवल खून और दहशत से मतलब होता है अब वह चाहे किसी का भी क्यों न हो ? फिर भी आज तक देश में एक कड़ा कानून सर्व सम्मति से नहीं बन सका है हाँ सांसदों के वेतन भत्ते और निधि को बढ़ाने की की हर बार सफल कोशिश अवश्य होती रही है. संसद निधि से हर वर्ष १ करोड़ रु० स्थानीय सुरक्षा के नाम पर आरक्षित कर दिए जाने चाहिए जिससे कुछ वर्षों में धन की जो कमी सुरक्षा में महसूस होती है उसमें कुछ इज़ाफ़ा हो सके. इस तरह के विकास का कोई मतलब नहीं है जब देश के हर विकास और पूरे तंत्र पर आतंक का खतरा मंडरा रहा हो ?
     अब समय आ गया है कि हम भी इस बारे में पूरी तरह से चेत जाएँ क्योंकि इस तरह की घटनाओं को हम नागरिक ही कुछ हद तक कम कर सकते हैं पर आज हमारे पर अपने घरों में ही झाँकने की फुर्सत नहीं है तो हम अपने मोहल्ले के बारे में क्या सोच पायेंगें ? ऐसे किसी भी स्थान पर बम रखने के लिए आतंकियों को कई बार चक्कर लगाने पड़ते हैं और इस पूरी कवायद में हमारी सोती हुई लापरवाह आँखें उन्हें देख ही नहीं पाती हैं. यह भी सही है कि इन सभी में कोई न कोई स्थानीय निवासी भी शामिल होता है पर अगर हम अपने आस पास की गतिविधियों पर कुछ नज़र रखने की आदत बना लें तो हो सकता है कि कई बार कोई संदिग्ध हमारी नज़रों में आ ही जाये ? अब हम नागरिकों को अपने स्तर से अपने मोहल्ले में आने जाने वालों पर ध्यान रखना सीखना होगा और भीड़ भरे बाज़ारों में दुकानदारों को इस बात का प्रयास करना चाहिए कि वे अपने खर्चों से सड़कों पर नज़र रखने के लिए कुछ व्यवस्था करें जिससे ऐसी किसी घटना के बाद पुलिस को कुछ सुराग भी मिल सकें और आतंकियों को हमले करने में परेशानी होने लगे. अब हर बात के लिए सरकारों का मुंह ताकने के स्थान पर हमें अपनी सुरक्षा के लिए ख़ुद भी कुछ करना ही होगा. 
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...